Wednesday, September 30, 2015

LBS Diaries Part 11 - श्रमदान

आजकल साफ़ सफाई के प्रति लोगो की विचारधारा बदली हुई प्रतीत होती है।  अब यह परिवर्तन सच्चा है या नहीं इस पर टिपण्णी करना तो कठिन है परन्तु फेसबुक पर दिख रही अनेक तस्वीरो से तो यही लगता है की लोग सच में पुरे देश को साफ़ कर के ही मानेंगे। हर दूसरे दिन यह देखने को मिलता है की लोग बड़ी संख्या में सडको पर उतर आते है और इनके पास सफाई के इतने औजार होते है की कचरा उनको देख कर भी भाग खड़ा होता है। और यह सारे लोगो में इतना भाईचारा होता है की सब मिलकर एक छोटी सी जगह पर ही झाड़ू मारने लगते है।  और इनमे पूर्णता पाने की इतनी ललक होती है की यह एक ही जगह पर झाड़ू लिए घंटो खड़े रहते है।

जब पूरा देश इस सफाई की लहर से प्रभावित है तो भला हमारी अकादमी कैसे पीछे रह सकती है।  तो हुआ यह की पिछले शनिवार को सुबह सुबह एक श्रमदान का कार्यक्रम रखा गया जिसके अंतर्गत सारे प्रशिक्षु अधिकारियों को विभिन्न छोटे छोटे समूहों में बांट दिया गया और हर एक समूह को अकादमी का एक हिस्सा साफ़ सफाई करने हेतु आवंटित किया गया।  इसके पश्चात हर समूह को पॉलिथीन की थैलियां और हाथ दस्ताने दिए गये।  यह सब देख के लग रहा था की कचरे से ज्यादा तो कचरा उठाने वाला कचरा है।  पर चलिए कोई बात नहीं, सोचा की कम से कम लोगो के मन में अगर सफाई की एक ज्योति भी अगर जागृत होती है तो यह इस अभियान की सफलता होगी।  

तो इसी आशा के साथ निकल पड़े हम अपने हिस्से की ओर।  हमारे समूह को वह हिस्सा आवंटित किया गया था जहा अकादमी में काम कर रहे मजदूर लोग रह रहे थे।  वहा हम शायद पहली ही बार गए थे और वहा की हालत देख कर लगा की सफाई की बहुत जरूरत है। पलक झपकते ही हमारी सारी थैलियां भर चुकी थी। परन्तु जब हमने पीछे मुड़कर देखा तो वहा रह रहा एक मजदूर बाहर आया और कुछ कचरा सामने ही फैक दिया। तब इस बात का एहसास हुआ की जब तक हम लोगो की सोच और आदते नहीं बदलेंगे तब तक कुछ फरक नहीं पड़ेगा।  सिर्फ सडको का कचरा उठाने से बात नहीं बनेगी, मन का कचरा भी साफ़ करना होगा।  हमारे समूह के कुछ लोगो ने जाकर इन मजदूरो को समझाने की कोशिश की जो की प्रशंशनीय है।  

परन्तु देश भर में चल रहे स्वच्छ भारत अभियान की झलकियाँ यहाँ भी देखने को मिली।  कुछ समूहों को ऐसे हिस्से मिले जहा पर कचरे का नामो निशाँन न था।  शायद इतने लोगो की भगदड़ के चलते सफाई का उल्टा ही असर पड़ा होगा। कुछ लोग तो केवल झाड़ू के  साथ सेल्फ़ी लेने में ही व्यस्त थे और बस समय समाप्त होने का इंतज़ार कर रहे थे।  दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी लोग थे जिनका जस्बा देख कर दिल गार्डन गार्डन हो गया।  वो पुरे जोश के साथ सफाई करते हुए आघे बढ़ते ही जा रहे थे।  उन्हें देख और भी लोग प्रेरित हो रहे थे।  और यही तो इस अभियान का सार है।  हमे ज्यादा से ज्यादा लोगो को प्रेरित करना होगा ताकि स्वच्छ भारत का स्वप्न साकार कर सके।  

 इस अभियान के दौरान कुछ विचार मेरे मन में आये।  यह अभियान अकादमी के स्वच्छ प्रांगण में करने की बजाय मसूरी शहर के किसी ऐसे हिस्से में करना चाहिए था जहा इसकी सच में जरूरत थी और इसके साथ ही हम वहा रह रहे लोगो को स्वच्छता के महत्व के बारे में बता सकते थे। अथवा हम यह अभियान उन जगहों पर भी कर सकते थे जहा हम हर शनिवार Trek करने गए थे।  शर्म के बात है की उन वीरान सुन्दर पहाड़ियों पर भी कचरो के भण्डार पनप रहे है।  खैर जाने दीजिये, आशा करते है की कुछ समय बाद यह स्वच्छता अभियान सच में सफल हो और हमारा भारत, स्वच्छ भारत कहलाया जा सके!

2 comments:

प्रतिभा said...

बहुत ख़ूब । पर सफ़ाई करने के अलावा (यदि सोच का या सच्ची में सड़क का), मुझे यह लगता है कि हमारे देश में कई जगा में 'यूज़ मी' कि उपलब्धता नहीं है।

Genie said...

hmm...that's true!