Sunday, May 8, 2016

IAS Diaries Part 8 - जय स्वछता


इन दिनों भारत में एक नयी लहर सभी के दिलों को छू रही है। भारत को स्वच्छ बनाने की लहर।  भारत को "खुले में शौच मुक्त (ODF)" करने की लहर।  आप सभी इस बात से तो वाकिफ होंगे  ही की सबसे ज्यादा खुले में शौच करने वालों की संख्या भारत में ही है जो कि बहुत ही शर्म की बात है।  स्वतंत्रता के इतने वर्षो बाद भी हम इस बीमारी को दूर नहीं कर सके है।  हालाँकि पिछले कुछ वर्षो से चल रहे प्रयास प्रशंसनीय है लेकिन इसमें और भी तेजी लाने की जरूरत है।

पिछले कुछ दिनों से हमारी अकादमी में भी ऐसा ही कुछ माहौल बन रहा था।  देश के विभिन्न भागो से कई अफ़सर एवं कार्यकर्ता आये और उन्होंने हमे सम्बोधित किया।  देश में चल रहे कई प्रयासों से हमे अवगत कराया।  जब बात भारत को "खुले में शौच मुक्त (ODF)" बनाने की आती है तो दो रास्ते हमारे समक्ष होते है।  एक यह की शौचालय सरकार के द्वारा बनाए जाये और दूसरा की लोगो की सोच और आदतों में परिवर्तन लाया जाये।  पहली दिशा में कई प्रयास हुए परन्तु हमे सफलता नहीं मिली और इसी की चलते आज "समुदाय संचालित संपूर्ण स्वछता (CLTS)" पर काफी कार्य हो रहा है। इसमें मुख्य लक्ष्य होता है लोगो की सोच में परिवर्तन लाना और इसके लिए कई तर्कों को प्रयोग किया जाता है।  जैसे की अगर किसी माँ को यह समझाया जाये की खुले में शौच किस तरह से उसके बच्चों के स्वास्थ और उनके भविष्य के लिए हानिकारक है तो उसे यह बात जल्दी समझ आएगी। अकादमी आये हुए कार्यकर्ताओ ने हमे इस सन्दर्भ में जानकारी प्रदान की।

और फिर अगले ही  दिन हम निकल पड़े पास के कुछ गाँवों में वहाँ के लोगो को इस विषय में अवगत कराने।  इस नए प्रयास की ख़ास बात यह है की यह लोगो को प्रेरित करता है अपनी समस्याओं को स्वयं ही हल करने की।  पहली की तरह अगर सरकार ही सब करेगी तो कुछ नहीं बदलेगा।  शौचालय ज़रूर बनेंगे परन्तु उनका उपयोग नहीं होगा।  जब हम सब गाव साटा घाट पहुंचे तो हमने उन्हें अपना परिचय ना देते हुए यही बताया की हम उनसे बातें करने आये हैं और उनकी परेशानियों को समझना समझना चाहते है।  एक-एक घर जा कर हमने सभी को बुलाया और एकत्रित किया।  काफी देर तक हमने उनसे उनकी दिनचर्या के बारे में बातें की।  उनके द्वारा दी गयी कुर्सियों  पर न बैठ हम उन सभी के साथ जमीन पर बैठे और देखते ही देखते  हम सभी  लोग एक दूसरे से घुल मिल गए।



जब बात शौच पर उठी तो शुरू में थोड़ी झिझक महसूस हुई परन्तु जब हमने कई बार पूछा तो कई लोगो ने स्वीकारा की वो खुले में शौच जाते है।  फिर हमने उनसे गाँव का एक नक्शा बनवाया और उसकी सुंदरता पर उनकी प्रशंसा की।  उसके पश्चात उनसे कहा की पीले गुलाल से उन जगहों को चिन्हित करे जहां वो खुले में शौच करते है।  देखते ही देखते गाँव की सुंदरता लुप्त हो गयी।  यह अहसास उनको भी हुआ।  फिर हमने उनसे अपने स्वास्थ सम्बंधित खर्चो को जोड़ने के लिए कहा।  और जब उन सबका योग करने को कहा तो नतीजा देख वह सब दंग रह गए। उसके बाद हमने सबसे बड़े हथियार का उपयोग किया।  उन्ही के गाव से लिया हुआ मल  हमने उनके समक्ष रखा और समझाया की कैसे यह उनके खाने-पीने में मिल रहा है।



काफी विचार-विमर्श के बाद सभी इस बात से सहमत थे की खुले में शौच नहीं करना चाहिए।  प्रश्न अब यह था की किस तरह से कम लागत से इसका समाधान किया जाये।  हमने उन्हें इसका उपाय बताया और वही पर एक समिति का गठन किया और उनको  इस कार्य को संपूर्ण करने की एक तिथि निर्धारित करने को कहा।  उनमे से कई लोग जिनके घरों के शौचालय था, दूसरों से बोले "तुम भी शौचालय बनाओ और हमे अपना मल खिलाना बंद करो"। सभी ने मिल कर यह निर्णय लिया की जल्द ही गाव खुले में शौच मुक्त हो।  तब तक के लिए मल पर मिट्टी डालने की शपथ ली गयी।



इस पूरे कार्यक्रम में सबसे अच्छी बात मुझे यह लगी की लोग हमे सुनने को तैयार हुए जानते हुए की हम उन्हें कुछ देने नहीं आये है।  यह दर्शाता है की सभी लोग अपनी बीमारी से निकलना चाहते है बस एक दिशा दिखाने की और प्रेरित करने की देर है।  शुरुवात ज़रूर हो गयी है परन्तु हमे बार-बार और लगातार जाकर देखने की जरूरत है की कार्य की प्रगति कैसी है।  और अगर हमे 2019  तक इस लक्ष्य को पाना है तो इसे एक जन-आंदोलन बनना ही होगा।

जय स्वछता
जय हिन्द !