Saturday, June 29, 2013

वो मासूम बारिश !

जाने कितने दिनों से,
तेरे लिए तरसा हूँ मैं ।
जाने कितने पलो में,
मैंने तुझे याद किया ,
और आज जाके जब,
तेरी इन छोटी छोटी बूंदों ने,
इन प्यारी मीठी बूंदों ने,
जब मेरा स्पर्श किया,
तो कही जाके इस दिल को चैन मिला ।

तेरे आने पे,
इस हवा में जो ताजगी हैं,
मौसम में जो मदहोशी हैं,
इन चेहरों पे जो मुस्कान हैं ,
वो अप्रतिम हैं ।

पर जाने क्यूँ, ये दिल उदास भी हैं ,
शायद तेरी ये  तेज हवाए ,
तेरी मगरूर अदाए ,
पानी से लतपत ये मैदान ,
मुझे याद दिलाते हैं, उन लोगो की ,
जो चले थे देव दर्शन पर, उन पहाड़ो में,
जिन्हें तूने अपने आलाप में ले लिया,
उन्हें उनके परिवारों से अलग कर।

मैं जानता हूँ दोष हमारा है,
हमने तू झे नकारा हैं,
स्वार्थी हो गए है हम सब,
पर सच तो यही हैं,
ये संसार कल भी तुम्हारा था ,
और आज भी तुम्हारा है।






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