Wednesday, July 22, 2009

नन्हा सिपाही

बात उस समय की है जब हम नर्सरी स्कूल में पढ़ा करते थे। वो भी क्या दिन थे, न कोई फ़िक्र , न कोई आशाए और ना ही कोई अपेक्षाए। शायद वो ही एक ऐसा समय था जब हर जगह में सुन्दरता दिखती थी, हर चेहरा मुस्कुराता लगता था और हर अनजान शक्स अजीज दोस्त लगता था। उस समय हम इस कदर खुबसूरत लगा करते थे की हर कोई हमे अपनी बाहों में भर लेता था और हमारे कोमल गालो पे अत्याचार करता था।

मजे की बात तो ये थी की इस अत्याचार में लड़किया सबसे आगे रहती थी। और हम आज भी उतने ही खुबसूरत लगते है, बस लोगो का नजरिया बदल गया है। चलिए अपनी सुन्दरता के किस्से हम फ़िर कभी सुना देंगे। आइये वापस चलते है बचपन के उन हसीन लम्हों में। तो हमारे माता पिता दोनों ही नौकरी किया करते थे। इस वजह से हमें वो हमारे बहुत अजीज रिश्तेदारों के घर छोड़ दिया करते थे। हमारे लिए वो एक दुसरे घर जैसा हो गया था जहा हम दिन भर खेलते कूदते थे। वो सब भी हमारा बहुत ख्याल रखते थे और बहुत सारा वाला प्यार करते थे। हमारे साथ हँसते थे, खेलते थे और क्या नही करते थे।

फ़िर जब हम तीन साल के हुए तो हमारी भरती स्कूल में की गई और फ़िर हमारा उनके घर आना जाना कम हो गया। पर जहा दिल के तार जुड़ जाते है वहा की याद तो हमेशा ही आती है। तो बात उस दिन की है जब हमारे माता पिता हमारे लिए मिलिटरी की पोशाक लाये थे जिसे हम अपने विद्यालय की आकर्षक पहनावा प्रतियोगिता में प्रर्दशित करने वाले थे। उसे देख कर हम इतने उत्साहित थे की उसी समय हमने उसे पहनने की जिद की और फ़िर जब बात नही बनी तो अपना राम बाण उपयोग करने की सोची। जल्दी से हमने अपना रोने वाला चेहरा बनाया और उसपे मायूसी का तड़का लगाया। जादू चल गया। झट से हमने पोशाक पहन भी ली। 

माशा अल्लाह ! उस दिन तो हमने सेना में जाने की ठान ही ली थी। सभी ने
बहुत तारीफ़ की। फ़िर हमें याद आई हमारे दुसरे घर की। उन्हें ये रूप दिखाए बिना हमें चैन कहा आता। हमने अपने माता पिता से जिद की पर इस बार बात नही बनी। और इस बार कोई दाँव पेंच नही चले। हमारा दूसरा घर काफ़ी दूर था। पर हमें रास्ता याद था। तो हमने सोचा की हमें अकेले ही जाना चाहिए। तो बिना कुछ सोचे समझे हम निकल पड़े। तीन साल के थे हम और ऊपर से ये पोशाक। फ़िर भी उस समय हमें समझ नही आया था की लोग क्यूँ हमें इस तरह घुर घुर के देख रहे थे। काफी देर बाद जब हम अपने दुसरे घर पहुचे तो हमें देख वो सब उत्साहित होने की जगह चिंतित हो गए।

हमें घर पे न पाकर हमारे माता पिता तो डर ही गए थे। पुरे इलाके में हमारी खोज बीन चालू हो गई। फ़िर जब हमारे रिश्तेदारों ने हमें वापस घर लाया तब जाकर हमारे माता पिता की जान में जान आई। तब हमें लगता था की हमने ऐसा क्या कर दिया। आज उस बारे में सोचते है तो समझ आता है की उस नन्हे सिपाही ने क्या गुल खिलाये थे।

7 comments:

ronsin said...

khatarnaak speed se blog update karte ja rahe ho... gud hai... achchha time pass hota hai... :)
achchha likhe ho... bachpan chhote mote khuraphaat karte rehne k liye hi hota hai... ;)

ranu said...

its wonderful yaar..i dint kno abt dis story..so it ws gr8 to imagine all da events and u in tat costume!!

Whats in a name.......... said...

YE itna "CUTELY" likha hua hai, aisa lagta hai jaise ek teen saal ke bachche ne likha ho!! bahut maasoomiyat hai is post mein!!

Genie said...

@ronsin thanku :)

@ranu thought you knew this..anywez now you do !

@whats in a name
thats exactly what i wanted :) cheers :)

the full blood prince said...

dude.. mujhe ab complex ho raha hai.. kuchh to likhna hi padega ab! :P
well written.. aapki samvednaayein bhali-bhaanti preshit hui hain! :D

Genie said...

dood.... don't i always tell you that you should write often !

The-one-who-thought-this said...

dhanyawaad aapko joh aapne hindi saptah ka samaan rakha...:P